नया जन्म में क्या होता है ? (भाग-2)
फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था। 2 उस ने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, ‘‘हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आया है ; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता ।’’ 3 यीशु ने उस को उत्तर दिया; कि ‘‘मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे (सही अनुवाद: नया जन्म न ले) तो परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता ।’’ 4 नीकुदेमुस ने उस से कहा, ‘‘मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है ? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है ?’’ 5 यीशु ने उत्तर दिया, कि ‘‘मैं तुझ से सच सच कहता हँ ; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता । 6 क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है ; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। 7 अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है । 8 हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहाँ से आती और किधर को जाती है ? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।’’ 9 नीकुदेमुस ने उस को उत्तर दिया ; कि ये बातें क्योंकर हो सकती हैं ?’’ 10 यह सुनकर यीशु ने उस से कहा ; ‘‘तू इस्राएलियों का गुरु हो कर भी क्या इन बातों को नहीं समझता।’’
नया जन्म में क्या होता है, इसके ऊपर पिछले सप्ताह का संदेश हम आज पूरा करते हैं। यूहन्ना 3: 7 में यीशु ने नीकुदेमुस से कहा, ‘‘अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा ; कि ‘तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है।’’ और पद 3 में ‘उसने’ नीकुदेमुस से कहा--और हम से भी--कि हमारा अनन्त जीवन हमारे नया जन्म लेने पर निर्भर है। ‘‘मैं तुझ से सच सच कहता हूँ, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे (सही अनुवाद: नया जन्म न ले) तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।’’ अतः मसीही जीवन में हम किसी पार्श्ववर्ती या वैकल्पिक या कान्तिवर्द्धक बात पर विचार नहीं कर रहे हैं। नया जन्म, कोई श्रृंगार नहीं है जो अन्त्येष्टि करने वाले, मृत देहों को जीवित जैसा दिखाने के प्रयास में करते हैं। नया जन्म, आत्मिक जीवन की सृष्टि है, जीवन की नकल नहीं।
इस प्रश्न का उत्तर कि नया जन्म में क्या होता है? पिछली बार हमने दो कथनों से आरम्भ किया: 1) नया जन्म में जो होता है, वो नया धर्म प्राप्त करना नहीं है अपितु नया जीवन प्राप्त करना है और 2) नया जन्म में जो होता है, वो मात्र यीशु में अलौकिकता का समर्थन नहीं है, अपितु, अपने स्वयँ के अन्दर अलौकिकता का अनुभव है।
पवित्र आत्मा के द्वारा नया जीवन
नीकुदेमुस एक फरीसी था और उसके पास धर्म बहुत था। लेकिन उसके पास कोई आत्मिक जीवन नहीं था। और उसने यीशु में परमेश्वर का अलौकिक कार्य देखा, किन्तु उसने परमेश्वर के उस अलौकिक कार्य का अपने अन्दर अनुभव नहीं किया। अतः पिछली बार के हमारे दो बिन्दुओं को एक साथ रखते हुए, जो नीकुदेमुस को आवश्यक था, जैसा यीशु ने कहा, वो था पवित्र आत्मा के द्वारा अलौकिक रूप से प्रदान किया गया नया जीवन। इस नये जीवन को क्या आत्मिक बनाता है और क्या इसे अलौकिक बनाता है, वो ये कि यह, परमेश्वर जो ‘आत्मा’ है ‘उसका’ कार्य है। ये हमारे शरीरिक हृदयों और मस्तिष्कों के स्वाभाविक जीवन से ऊपर है।
पद 6 में यीशु कहते हैं, ‘‘क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है ; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है।’’ शरीर में एक प्रकार का जीवन होता है। प्रत्येक मानव, एक जीवित शरीर है। किन्तु प्रत्येक मानव, एक जीवित आत्मा नहीं है। एक जीवित आत्मा बनने के लिए या एक आत्मिक जीवन पाने के लिए, यीशु कहते हैं कि हमें ‘‘आत्मा से जन्मा’’ होना अवश्य है। शरीर एक प्रकार का जीवन उत्पन्न करता है। ‘आत्मा’ एक अन्य प्रकार का जीवन उत्पन्न करता है। यदि हमारे पास ये दूसरे प्रकार का जीवन नहीं है, हम परमेश्वर का राज्य नहीं देख पायेंगे।
यीशु में, आत्मा के द्वारा
पिछली बार जब हमने बन्द किया तब, हमने दो अति-महत्वपूर्ण बातों को देखा था: नया जन्म का यीशु के साथ सम्बन्ध और नया जन्म का विश्वास के साथ सम्बन्ध। यीशु ने कहा,‘‘मार्ग और सच्चाई (सत्य) और जीवन मैं ही हूँ’’ (यूहन्ना 14:6)।
प्रॆरित यूहन्ना ने कहा, ‘‘परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है: और यह जीवन उसके पुत्र में है। जिस के पास पुत्र है, उसके पास जीवन है ; और जिस के पास परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसके पास जीवन भी नहीं है’’ (1 यूहन्ना 5: 11-12)। अतः एक और नया जीवन जिसकी हमें आवश्यकता है, ‘‘पुत्र में है’’--यीशु वो जीवन है। यदि आपके पास ‘वह’ है, आपके पास नया आत्मिक, अनन्त जीवन है। और दूसरी ओर यूहन्ना 6: 63 में यीशु कहते हैं, ‘‘आत्मा तो जीवनदायक है।’’ और जब तक आप ‘आत्मा’ से न जन्मॆं’, आप परमेश्वर के राज्य में प्रवॆश नहीं कर सकते (यूहन्ना 3: 5)।
अतः परमेश्वर का पुत्र-जो हमारा जीवन है-के साथ जुड़ने के द्वारा हमारे पास जीवन है, और हमारे पास वो जीवन ‘आत्मा’ के कार्य के द्वारा है। इस प्रकार, हमने निष्कर्ष निकाला था, कि पुनरुज्जीवन में ‘आत्मा’ का कार्य, हमें मसीह से संयुक्त करने द्वारा हमें नया जीवन प्रदान करना है। जिस तरह जॉन कैल्विन कहता है, ये है, ‘‘पवित्र आत्मा वो बन्धन है जिसके द्वारा मसीह हमें प्रभावकारी ढंग से स्वयँ से जोड़ता है’’ (इंस्टिट्यूट्स -तृतीय, 1, 1) ।
विश्वास के द्वारा यीशु के साथ जोड़े गए
और फिर हमने विश्वास के साथ इस तरह सम्बन्ध बनाया। यूहन्ना 20: 31 कहता है, ‘‘ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।’’ और 1 यूहन्ना 5: 4 कहता है, ‘‘जो कुछ परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह संसार पर जय प्राप्त करता है, और वह विजय जिस से संसार पर जय प्राप्त होती है--हमारा विश्वास है।’’ परमेश्वर से उत्पन्न हुआ--जय पाने की कुंजी। विश्वास--जय पाने की कुंजी। क्योंकि विश्वास वो माध्यम है जिससे हम परमेश्वर से जन्मने का अनुभव करते हैं। अतः विगत सप्ताह हमने संदेश को इस तरह सारांश किया था: नया जन्म में, विश्वास के द्वारा हमें यीशु मसीह से जोड़ने के द्वारा, ‘पवित्र आत्मा’ हमें अलौकिक रीति से नया आत्मिक जीवन देता है।
नया जन्म : एक नयी सृष्टि, पुराने को सुधारना/संशोधित करना नहीं
जो अब हमें यह वर्णन करने के तीसरे तरीके पर ले आता है कि नया जन्म में क्या होता है। नया जन्म में जो होता है वो आपके पुराने मानव-स्वभाव की उन्नति या सुधारना नहीं है अपितु एक नये मानव-स्वभाव की सृष्टि है--एक स्वभाव जो वास्तव में आप हैं, जो क्षमा किया गया और शुद्ध किया गया है; और एक स्वभाव जो वास्तव में नया है, और आपके अन्दर वास करने वाले परमेश्वर के ‘आत्मा’ के द्वारा बनाया जा रहा है।
मैं आपको उस यात्रा के संक्षिप्त वृत्तान्त में अपने साथ ले चलता हूँ जिससे होकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ। यूहन्ना 3: 5 में यीशु नीकुदेमुस से कहते हैं, ‘‘मैं तुझ से सच सच कहता हूं ; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।’’ इन दो शब्दों ‘‘जल और आत्मा से’’ से यीशु का क्या अर्थ है ? कुछ मसीही सम्प्रदाय विश्वास करते हैं कि ये पानी के बपतिस्मा का उद्धरण/संकेत है, वो तरीका जिससे ‘पवित्र आत्मा’ हमें मसीह से जोड़ता है। उदाहरण के लिए, एक ‘वेब-साइट’ इसे इस तरह समझाता है:
पवित्र बपतिस्मा, सम्पूर्ण मसीही जीवन का आधार है, ‘आत्मा’ में जीवन का प्रवेश-द्वार और वो द्वार जो अन्य संस्कारों तक हमारी पहुँच बनाता है। बपतिस्मा के द्वारा हम पाप से स्वतंत्र किये जाते हैं और परमेश्वर के पुत्र के रूप में पुनर्जन्म लेते हैं; हम मसीह के अंग/सदस्य बन जाते हैं, कलीसिया में सम्मिलित किये जाते और कलीसिया के अभियान में हिस्सेदार हो जाते हैं। ‘‘बपतिस्मा, वचन में जल के द्वारा पुनर्जन्म का संस्कार है।’’
लाखों लोगों को ये सिखाया गया है कि उनके बपतिस्मा ने उन्हें नया जन्म दिया है। यदि ये सच नहीं है, तो ये एक विशाल और विश्व-व्यापी त्रासदी है। और मैं विश्वास नहीं करता कि ये सच है। तो फिर यीशु का क्या मतलब है ?
यूहन्ना 3 में "जल", बुपतिस्मा का संकेत/ उल्लेख क्यो नहीं है ?
यहाँ विभिन्न कारण हैं कि मैं क्यों सोचता हूँ कि जल का उल्लेख, मसीही-बपतिस्मा का संकेत नहीं है। फिर हम देखेंगे कि प्रसंग हमें कहाँ ले जाता है।
1) शेष पूरे अध्याय में कही भी बपतिस्मा का उल्लेख नहीं है
पहला, यदि यह मसीही-बपतिस्मा का संकेत था और नया जन्म के लिए ये अनिवार्य था, जैसा कि कुछ लोग कहते हैं कि यह है, तो ये अजीब प्रतीत होता है कि जो यीशु ने इस अध्याय में हमें ये बताने के लिए कहा कि सनातन जीवन कैसे पायें उसमें यह ग़ायब है। 15 पद: ‘‘जो कोई विश्वास करॆ, उस में अनन्त जीवन पाए।’’ पद 16: ‘‘जो कोई उस पर विश्वास करॆ, वह नाश न हो (होगा), परन्तु अनन्त जीवन पाए।’’ पद 18: ‘‘जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती।’’ यदि बपतिस्मा उतना ही अनिवार्य था, यह विचित्र प्रतीत होगा, यह विश्वास के साथ-साथ व्यक्त नहीं किया गया।
2) हवा की अनुरुपता/तुल्यरुपता के साथ बपतिस्मा सही नहीं बैठता
दूसरा, पद 8 में हवा के साथ तुलना करना अजीब प्रतीत होगा यदि नया जन्म लेना, पानी के बपतिस्मा के संग इतनी मजबूती से जुड़ा हुआ है। यीशु कहते हैं, ‘‘हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को जाती है ? जो कोई ‘आत्मा’ से जन्मा है वह ऐसा ही है।’’ ये यह कहता हुआ प्रतीत होता है कि पुनरुज्जीवन देने के लिए परमेश्वर, हवा के जैसा ही स्वतंत्र है। किन्तु हर बार जब एक शिशु पर छिड़काव किया जाता है, ऐसा होता है, तो वो सच प्रतीत नहीं होता है। उस मामले में हवा, उस संस्कार द्वारा बहुत सीमित होगी ।
3) नीकुदेमुस को यीशु की झिड़की के साथ बपतिस्मा सही नहीं बैठता
तीसरा, यदि यीशु मसीह-बपतिस्मा का संकेत कर रहे हैं, तो ये अजीब प्रतीत होता है कि ‘वह’ फरीसी नीकुदेमुस से पद 10 में कहे, ‘‘तू इस्राएलियों का गुरु हो कर भी क्या इन बातों को नहीं समझता ?’’ ये बात अर्थपूर्ण है यदि यीशु किसी ऐसी बात का संकेत कर रहे हैं जो पुराना नियम में सिखाया गया हो। लेकिन यदि ‘वह’ एक बपतिस्मा का संकेत कर रहे हैं जो बाद में आयेगा और यीशु के जीवन और मृत्यु से अपना अर्थ लेगा, ऐसा प्रतीत नहीं होता कि ‘उसने’ नीकुदेमुस को झिड़का होता कि इस्राएल का एक गुरु नहीं समझता कि ‘वह’ क्या कह रहा है।
4) नयी वाचा की प्रतिज्ञाओं में जल और आत्मा जुड़े हुए हैं
अन्त में, पद 10 में वही बयान हमें कुछ पृष्ठभूमि के लिए पुराना नियम में भेज देता है, और हम क्या पाते हैं कि जल और आत्मा, नयी वाचा की प्रतिज्ञाओं में निकटता से जुड़े हुए हैं, विशेषतया यहेजकेल 36 में। अतः आइये हम एक-साथ वहाँ चलें। इस संदेश के शेष भाग के लिए, यह मूल-पाठ आधार है।
यहेजकेल 36 में जल और आत्मा
यहेजकेल भविष्यवाणी कर रहा है कि परमेश्वर अपने लोगों के लिए क्या करेगा, जब ‘वह’ उन्हें बाबुल के निर्वासन से वापस ले आयेगा। इसका आशय मात्र इस्राएल के लोगों की तुलना में बहुत विशाल है, क्योंकि यीशु, ‘नयी वाचा’ को अपने लहु के द्वारा उन सब के लिए सुरक्षित रखने का दावा करता है जो उस में विश्वास रखेंगे (लूका 22: 20)। और यह ‘नयी वाचा’ की प्रतिज्ञाओं का एक बयान है, यिर्मयाह 31: 31 (से आगे) में बयान की गई के ही समान। आइये हम इसे मिलकर पढ़ें। यहेजकेल 36: 24-28:
मैं तुम को जातियों में से ले लूँगा, और देशों में से इकट्ठा करूँगा; और तुम को तुम्हारे निज देश में पहुँचा दूँगा। मैं तुम पर शुद्ध जल छिड़कूँगा, और तुम शुद्ध हो जाओगे; और मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता और मूरतों से शुद्ध करूँगा। मैं तुम को नया मन दूँगा, और तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूँगा; और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम को माँस का हृदय दूँगा। और मैं अपना ‘आत्मा’ तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूँगा कि तुम मेरी विधियों पर चलोगे और मेरे नियमों को मानकर उनके अनुसार करोगे। तुम उस देश में बसोगे जो मैं ने तुम्हारे पितरों को दिया था; और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूँगा।
मैं सोचता हूँ कि यही वो परिच्छेद है जो यीशु के शब्दों को उत्पन्न करता हैं, ‘‘जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।’’ ‘वह’ किससे कहता है कि, ‘‘तुम मेरी प्रजा ठहरोगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूँगा’’ (पद 28) ? पद 25: उन लोगों से जिन्हें ‘वह’ कहता है, ‘‘मैं तुम पर शुद्ध जल छिड़कूँगा, और तुम शुद्ध हो जाओगे; और मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता और मूरतों से शुद्ध करूँगा।’’ और पद 26: उन लोगों से जिन्हें ‘वह’ कहता है, ‘‘मैं तुम को नया मन दूंगा, और तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूंगा।’’ दूसरे शब्दों में, वो लोग जो राज्य में प्रवेश करेंगे वे हैं जिनके पास एक नयापन है जिसमें सम्मिलित है पुराने का शुद्ध किया जाना और एक नये की सृष्टि।
अतः मैं ये निष्कर्ष निकालता हूँ कि जब हमारा नया जन्म होता है ‘‘जल और आत्मा’’ हमारे नयेपन के दो पहलुओं की ओर संकेत करते हैं । और वो कारण कि दोनों महत्वपूर्ण हैं ये है: जब हम कहते हैं कि एक नया आत्मा, या एक नया हृदय हमें दिया गया है, हमारा ये अर्थ नहीं कि हम मानव रहना समाप्त कर देते हैं--नैतिक रूप से जवाबदेह हम स्वयं--जो कि हम सदा से रहे हैं। इससे पूर्व कि मेरा नया जन्म हुआ मैं एक मानव-जीव जॉन पाइपर था, और मैं वही मानव जॉन पाइपर नया जन्म के बाद हूँ। वहाँ एक निरन्तरता है। इसी कारण वहाँ शुद्धिकरण का होना अवश्य है। यदि पुराना मानव जॉन पाइपर, पूर्णतया लोप हो गया होता, क्षमा और शुद्धिकरण का पूरा विचार ही असंगत होता। विगत से कुछ भी शेष नहीं बचा होता जिसे क्षमा या शुद्ध किया जाता।
हम जानते हैं कि बाइबल हमें बताती है कि हमारा पुराना मनुष्यत्व क्रूस पर चढ़ाया गया (रोमियों 6: 6), और यह कि हम मसीह के साथ मर गए (कुलुस्सियों 3: 3), और हमें स्वयँ को ‘‘मरा हुआ समझना’’ (रोमियों 6: 11), और ‘‘पुराने मनुष्यत्व को उतारना’’ (इफिसियों 4:22) है। किन्तु उनमें से किसी का भी ये अर्थ नहीं है कि वही मानव-जीव, जीवन पर्यन्त दृष्टि में नहीं है। इसका अर्थ है कि एक पुराना स्वभाव, एक पुराना चरित्र, या सिद्धान्त, या झुकाव था, जिसे नष्ट किये जाने की आवश्यकता है।
अतः आपके नये हृदय, नया आत्मा, नये स्वभाव के बारे में सोचने का तरीका ये है कि यह अब भी आप हैं और इस कारण क्षमा किये जाने और शुद्ध किये जाने की आवश्यकता है--जल का उल्लेख करने में यही मूल बात है। मेरा अपराध/पाप अवश्य ही धोया जाना है। जल से शुद्ध किया जाना उसी का चित्र है। यिर्मयाह 33: 8 इसे इस तरह प्रस्तुत करता है: ‘‘मैं उनको उनके सारे अधर्म और पाप के काम से शुद्ध करूंगा जो उन्हों ने मेरे विरुद्ध किये हैं; और उन्हों ने जितने अधर्म और अपराध के काम मेरे विरुद्ध किये हैं, उन सब को मैं क्षमा करूँगा।’’ अतः जो व्यक्ति हम हैं--जो निरन्तर अस्तित्व में रहता है -अवश्य है कि क्षमा किया जाए, और दोष धो दिया जाए।
नया होने की आवश्यकता
किन्तु क्षमा किया जाना और शुद्धिकरण पर्याप्त नहीं है। मुझे नया होने की आवश्यकता है। मुझे रूपान्तरित किये जाने की आवश्यकता है। मुझे जीवन की आवश्यकता है। मुझे देखने और सोचने और मूल्य आँकने के एक नये तरीके की आवश्यकता है। इसी कारण पद 26 और 27 में यहेजकेल एक नया हृदय और नया आत्मा की बात करता है: ‘‘मैं तुम को नया मन दूँगा, और तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूँगा; और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम को मांस का हृदय दूंगा। और मैं अपना ‘आत्मा’ तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूंगा कि तुम मेरी विधियों पर चलोगे और मेरे नियमों को मानकर उनके अनुसार करोगे।’’
उन आयतों को समझने का मेरा तरीका ये है: निश्चित ही, पत्थर के हृदय का अर्थ है मृत हृदय जो आत्मिक वास्तविकता के प्रति संवेदनहीन और प्रतिक्रियाहीन था--जैसा कि नया जन्म से पहिले आपका हृदय महसूस कर सकता था। ये आवेग और इच्छा के साथ बहुत सी चीजों के प्रति प्रत्युत्तर दे सकता था। किन्तु आत्मिक सच्चाई और यीशु मसीह की सुन्दरता और परमेश्वर की महिमा और पवित्रता के पथ के प्रति यह पत्थर था। इसी को बदलना है यदि हमें परमेश्वर का राज्य देखना है। अतः नया जन्म में, परमेश्वर पत्थर का हृदय निकाल देता है और मांस का एक हृदय डाल देता है। शब्द मांस का अर्थ ‘‘मात्र मानव’’ नहीं है जैसा कि ये यूहन्ना 3:6 में अर्थ देता है। इसका अर्थ है, एक निर्जीव पत्थर बने रहने की जगह, कोमल और जीवित और प्रति-क्रियाशील और अनुभूतिपूर्ण। नया जन्म में, मसीह के साथ हमारी मृत, पत्थरीली ऊब,एक हृदय के द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है जो यीशु के महत्व की अनुभूति (आत्मिक रूप से चेतना) करता है।
तब जब 26 और 27 आयतों में यहेजकेल कहता है, ‘‘तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूँगा ... मैं अपना ‘आत्मा’ तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूंगा कि तुम मेरी विधियों पर चलोगे’’, मैं सोचता हूँ कि उसका अर्थ है कि नया जन्म में, परमेश्वर हमारे हृदय में एक जीवित, अलौकिक, आत्मिक जीवन डालता है, और वो नया जीवन—वो नया आत्मा—हमारे नये हृदय को नया आकार और चरित्र देते हुए स्वयँ ‘पवित्र आत्मा’ का कार्य है।
जो तस्वीर मेरे दिमाग में है वो यह कि ये नया गर्म, संवेदनशील, प्रतिक्रियाशील, जीवित हृदय मिट्टी के एक नरम लौंदे के समान है, और ‘पवित्र आत्मा’ स्वयँ इसके अन्दर जाता है और अपनी स्वयँ के रूप के अनुरूप इसे आत्मिक, नैतिक आकृति देता है। स्वयँ ‘उसके’ हमारे अन्दर होने के द्वारा, हमारे हृदय और मस्तिष्क ‘उसके’ स्वरूप--लेते हैं, ‘उसका’ आत्मा (तुलना कीजिये, इफिसियों 4: 23)।
'उसे ' अपने ख़जाने/निधि के रुप में ग्रहण कीजिए
अतः अब आइये हम पीछे जाकर इन दो सप्ताहों को सारांश करें। नया जन्म में क्या होता है ? नया जन्म में, विश्वास की मार्फत हमें यीशु मसीह से जोड़ने के द्वारा, ‘पवित्र आत्मा’ अलौकिक रूप से हमें नया आत्मिक जीवन देता है। अथवा, इसे दूसरे तरीके से कहें, ‘पवित्र आत्मा’ हमें मसीह के साथ संयोजित करता (जोड़ता) है जहाँ हमारे पापों के लिए शुद्धि है, और ‘वह’ हमारे कठोर, अप्रतिक्रियाशील हृदय को, एक कोमल हृदय से प्रतिस्थापित कर देता है जो यीशु को सब बातों से ऊपर अपने अन्दर संजोता है और जो ‘पवित्र आत्मा’ की उपस्थिति के द्वारा एक ऐसे हृदय में रूपान्तरित हो रहा है जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करने से प्रेम करता है (यहेजकेल 36: 27)।
चूँकि वो मार्ग जिससे आप इन सभी का अनुभव करते हैं, विश्वास के द्वारा है, मैं यीशु के नाम में, और ‘उसके’ ‘आत्मा’ की सामर्थ के द्वारा, आपको अभी आमंत्रित करता हूँ, कि आप ‘उसे’ अपने जीवन के पाप-क्षमा करने वाले, रूपान्तरित करने वाले ख़जाने/निधि के रूप में ग्रहण करें।