मेरी आँखें खोल दे कि मैं देख सकूँ
अपने दास का उपकार कर, कि मैं, जीवित रहूँ, और तेरे वचन पर चलता रहूँ । 18 मेरी आंखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूँ । 19 मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ; अपनी आज्ञाओं को मुझ से छिपाए न रख ! 20 मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है । 21 तू ने अभिमानियों को, जो शापित हैं, घुड़का है, वे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटके हुए हैं । 22 मेरी नामधराई और अपमान दूर कर, क्योंकि मैं तेरी चितौनियों को पकड़े हूँ । 23 हाकिम भी बैठे हुए आपस में मेरे विरूद्ध बातें करते थे, परन्तु तेरा दास तेरी विधियों पर ध्यान करता रहा । 24 तेरी चितौनियाँ मेरा सुखमूल और मेरे मन्त्री हैं ।
हमारे प्राणों के लिए समानान्तर रेल पटरियां
जबकि हमने 2011 में प्रवेश किया है, हमारे लिए परमेश्वर का उद्देश्य यह है कि हम पवित्रता एवं प्रेम और मिशन एवं स्वर्ग की दिशा में दो समानान्तर रेल पटरियों के मार्ग पर स्थिर बने रहें । इस ट्रेन की ये दो पटरियाँ परमेश्वर के सिंहासन के सामने प्रार्थना तथा परमेश्वर के वचन पर मनन करना हैं । आप में से कुछ लोगों को शायद हमारे मिशन स्टेटमेन्ट “द स्प्रिचुएल डायनेमिक्स” नाम पुस्तिका का दूसरा पृष्ठ याद होगा, जहाँ लिखा है,
परमेश्वर जो कुछ है उसे प्रिय जानते हुए, जिन सब से वह प्रेम करता है उन सबसे प्रेम करते हुए, उसके सभी अभिप्रायों के लिए प्रार्थना करते हुए, उसके पवित्र वचनों पर मनन करते हुए, उसके अनुग्रह द्वारा सम्भाले जाते हुए, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य में, प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की महिमा के गुणगान में हम परमेश्वर पिता के साथ सहभागी होते हैं ।
परमेश्वर के सिंहासन के सामने प्रार्थना करना और परमेश्वर के वचन पर मनन करना समानान्तर पटरियों के समान है जो कि हमारे प्राणों की ट्रेन को उस सही मार्ग पर रखती हैं जो पवित्रता तथा स्वर्ग की ओर ले जाता है । इस वर्ष के प्रारम्भ ही में हमें प्रार्थना तथा बाइबल मनन के लिए हमारे उत्साह को एक नवीनता प्रदान करना होगा । पुनः जागरण, और पुनःस्थापन और पुनर्नवीनीकरण के बिना सब कुछ पुराना, घिसा-पिटा और कमज़ोर हो जाता है । इसलिए प्रति वर्ष प्रार्थना-सप्ताह के दौरान प्रार्थना तथा बाइबल के प्रति अपने उत्साह को पुनः जगाने के लिए इन महान तथा बहुमूल्य बातों पर एक बार पुनः विचार करते हैं ।
भजन 119:18 से तीन सीखने योग्य बातें -
इस वर्ष वे दो सन्देश जो कि प्रार्थना सप्ताह के आरम्भ और अन्त के मध्य में हैं, भजन 119:18 से लिए गए हैं, “मेरी आंखें खोल दे कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं ।” इस पद में प्रार्थना और वचन दोनों के विषय हैं, और हमें यह देखना है कि कैसे, ताकि हम इन्हें अपने जीवनों और अपनी कलीसिया में इसी रीति से जोड़ सकें । हम इस पद से नीन चीजें सीखते हैं ।
- पहली बात यह कि परमेश्वर के वचन में अद्भुत बातें हैं, “मेरी आंखें खोल दे कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं ।” यह “व्यवस्था” शब्द “तोरह” है जिसका अर्थ है “निर्देश” या “शिक्षा” । हमारे लिए परमेश्वर की शिक्षाओं में अद्भुत बातें हैं । वास्तव में, वे इतनी अद्भुत हैं कि जब आप उन्हें सच में देखते हैं तो वे आपको गहराई से बदल डालती हैं और पवित्रता एवं प्रेम एवं सेवकाई के लिए सामर्थ्य प्रदान करती हैं (2 कुरिन्थियों 3:18) । इसीलिए परमेश्वर के वचन को पढ़ना, और जानना और उस पर मनन करना और रटना अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।
- इस पद से जो दूसरी बात हम सीखते हैं वह यह है कि परमेश्वर की अलौकिक सहायता के बिना कोई भी इन अद्भुत बातों को, जैसी वे वास्तव में हैं, नहीं देख सकता है । “मेरी आँखें खोल दे कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं ।” यदि परमेश्वर हमारी आंखें न खोले तो हम उसके वचन की अद्भुत बातों को नहीं देखेंगे । हम स्वाभाविक रूप से आत्मिक सुन्दरता को देखने के योग्य नहीं हैं । जब हम परमेश्वर की सहायता के बिना बाइबल पढ़ते हैं, तो बाइबल की शिक्षाओं और घटनाओं में परमेश्वर की महिमा का चमकना एक दृष्टिहीन मनुष्य के चेहरे पर सूरज के चमकने के समान है । बात यह नहीं है कि आप उसके ऊपरी अर्थ को नहीं समझ सकते हैं, परन्तु यह कि आप इसकी अद्भुत सुन्दरता और महिमा को इस रीति से नहीं देख सकते हैं कि यह आपके दिल को जीत ले ।
- जो कि हमें उस तीसरी बात की ओर ले जाती है जो हम इस पद से सीखते हैं, अर्थात, कि जब हम बाइबल पढ़ते हैं तो हमें परमेश्वर से अलौकिक प्रकाशन मांगना चाहिए । “मेरी आंखें खोल दे कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं ।” क्योंकि परमेश्वर के कृपालु प्रकाशन के बिना बाइबल की शिक्षाओं तथा घटनाओं में आत्मिक सुन्दरता को तथा परमेश्वर के अद्भुत कार्यों को देखने में हम अपने आप में असहाय हैं, हमें परमेश्वर से यह प्रार्थना करना चाहिए, “मेरी आंखें खोल दे ।”
सत्य के तीन कदम
अगले सप्ताह मैं परमेश्वर के वचन की अद्भुत बातों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहूँगा और कि व्यवहारिक रूप में हम कैसे उन्हें अपने मन मस्तिष्क में समझ सकते हैं । परन्तु आज मैं प्रार्थना पर ध्यान केन्द्रित करूँगा । मैं चाहता हूँ कि हम इस गम्भीर सत्य को समझें जो कि तीन चरणों में है: परमेश्वर का वचन परमेश्वर के प्रति एक ऐसे श्रद्धापूर्ण जीवन को जीने के लिए अति आवश्यक है जो कि स्वर्ग को ले जाता हो और जो पृथ्वी पर सामर्थी तथा अर्थ पूर्ण जीवन हो । हम परमेश्वर के वचन की सच्चाई को परमेश्वर की अलौकिक सहायता के बिना देख भी नहीं सकते हैं । और इसलिए हमें प्रतिदिन प्रार्थना का जीवन जीने वाले लोग होने की आवश्यकता है ताकि परमेश्वर वह सब करे जो उसे हमारे हृदयों तथा जीवनों में अपने वचन के अद्भुत कार्यों को करने के लिए आवश्यक हो ।
आइए एक एक करके इन तीन कदमों को उठाएँ और बाइबल के अन्य स्थलों में उनकी पुष्टि तथा उदाहरण देखें।
1. पवित्रतापूर्ण जीवन के लिए बाइबल पढ़ना अति आवश्यक है ।
पहली बात यह है कि परमेश्वर के वचन को देखना और इसे जानना और इसका हम में होना परमेश्वर के अभिप्रायों के लिए पवित्रता तथा प्रेम तथा सामर्थ्य से परिपूर्ण जीवन जीने के लिए अति आवश्यक है ।
पद 11 को पुनः देखें, “तेरे वचन को मैंने अपने हृदय में संचित किया है, कि तेरे विरूद्ध पाप न करूं ।” तब हम अपने जीवन में पाप से कैसे बच सकते हैं? अपने हृदयों में परमेश्वर के वचन को संचित करने के द्वारा । कितने ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के वचन पर मनन न करने और उस से प्रेम न करने और उसे न रटने के द्वारा अपने जीवन का बुरा हाल कर डालते हैं । क्या आप पवित्र बनना चाहते हैं, अर्थात कि, क्या आप पाप पर विजय पाने की सामर्थ्य चाहते हैं और एक अति धर्मी एवं त्यागपूर्ण प्रेम तथा मसीह के निमित्त पूर्ण भक्ति का जीवन जीना चाहते हैं? तो सही मार्ग पर आ जाइए । परमेश्वर ने धार्मिकता या सामर्थ्य की ओर जाने वाला एक मार्ग ठहराया है: और यह मार्ग अपने जीवनों में बाइबल को संचित करने का है ।
यह बात मैं वृद्धों से कहता हूँ और यह बात मैं जवानों के माता-पिता से कहता हूँ । पवित्र शास्त्र में दी परमेश्वर की आज्ञाओं और चेतावनियों और प्रतिज्ञाओं पर मनन कीजिए और उन्हें रटिए और उन से प्रेम कीजिए । मैं यह नहीं कह रहा कि यह आसान है, विशेषकर जबकि आप वृद्ध हो चले हों । परन्तु करने योग्य अधिकांश अच्छी बातें सरल नहीं हैं । एक सुन्दर फर्नीचर बनाना, एक अच्छी कविता लिखना, एक उत्कृष्ट संगीत रचना, एक विशेष भोजन बनाना या कोई उत्सव मनाना - इन में से कोई भी सरल नहीं है । परन्तु ये करने योग्य हैं । तो क्या एक अच्छा जीवन जीने के लिए कुछ करने योग्य नहीं है?
तलीथा अब दो वर्ष की है । वह बाइबल के पद याद करना सीख रही है । वह अलग-अलग प्रार्थनाएँ भी सीख रही है । क्यों? बाइबल के पदों को उसके लिए बार-बार दोहराने का कष्ट करने की क्या ज़रूरत है? बिल्कुल सीधी-सी बात है - जब वह तरूणाई में पहुंचे तो मैं चाहता हूँ कि वह परमेश्वर का भय मानने वाली, शुद्ध और पवित्र और प्रेमी और नम्र और दयालु और दीन और बुद्धिमान हो । और बाइबल बिल्कुल स्पष्ट रूप से कहती है, यह आपके हृदय में परमेश्वर के वचन को संचित करने के द्वारा होता है । “तेरे वचन को मैंने अपने हृदय में संचित किया है, कि तेरे विरूद्ध पाप न करूँ ।”
यूहन्ना 17:17 में, हमारे लिए यीशु ने अपनी उस महान प्रार्थना में ऐसा कहा है, “सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर- तेरा वचन सत्य है ।” “पवित्र करना” बाइबल का एक शब्द है जिसका अर्थ है कि एक व्यक्ति को पवित्र या धर्मी या प्रेमी या शुद्ध या सद्गुणी या आत्मिक बनाना । और इन बातों को मैं अपने स्वयं के लिए और अपने बच्चों के लिए और आपके लिए चाहता हूँ । तो फिर इस वर्ष हमें क्या करना चाहिए? यदि हम सत्य द्वारा पवित्र किए गए हैं और परमेश्वर का वचन यह सत्य है, तो हमें क्या करना चाहिए?
यदि एक डाँक्टर कहता है, “आप बहुत अस्वस्थ हैं और आप अपनी इस बीमारी के कारण मर जाएँगे, परन्तु यदि आप इस दवाई को लेंगे तो आप स्वस्थ हो जाएंगे और जीवित रहेंगे,” और आप इस दवाई को लेने में लापरवाही करते हैं - बहुत व्यस्त हूँ, ये गोलियाँ बड़ी-बड़ी हैं और गुटकने में बहुत कठिनाई होती है, या फिर आप इन्हें लेना भूल जाते हैं - आप अस्वस्थ रहेंगे और मर जाएँगे । पाप और आत्मिक अपरिपक्वता के साथ भी ऐसा ही है । परमेश्वर आप से जो कहता है कि वह आपको पवित्र करेगा, और आपको परिपक्व तथा बलवान तथा पवित्र बनाएगा, उसे यदि आप अनसुना करते हैं तो आप परिपक्व, बलवान और पवित्र नहीं होंगे । परमेश्वर के वचन को पढ़ना, उस पर मनन करना और उसे रटना और प्रिय जानना पाप पर विजय पाने और एक बलवान, भक्त, परिपक्व, प्रेमी, बुद्धिमान मनुष्य बनने के लिए परमेश्वर द्वारा नियुक्त तरीका है ।
परमेश्वर के वचन में ऐसी अद्भुत बातों को देखा जा सकता है जो कि आपको गहराई से परिवर्तित करेंगी, यदि आप उन्हें सच में देखेंगे और अपने आप में संचित करेंगे ।
2. परमेश्वर की सहायता के बिना हम नहीं देख सकते हैं ।
इस पाठ में दूसरी बात यह है कि परमेश्वर की अलौकिक सहायता के बिना बाइबल में जो अद्भुत बातें हैं उन्हें हम नहीं देख सकते हैं ।
कारण यह है कि हम पतित और भ्रष्ट और पापों में मरे हुए हैं और इसलिए अन्धे और अनभिज्ञ और कठोर हैं । इफिसियों 4:18 में पौलुस हमारा इस रीति से वर्णन करता है, हम “उस अज्ञानता के कारण जो (हम में) है, और (हमारे) मन की कठोरता के कारण, (हमारी) बुद्धि अन्धकारमय हो गई है, और (हम) परमेश्वर के जीवन से अलग हो गए हैं ।”
व्यवस्थाविवरण 29:2-4 में मूसा ने इस परेशानी के विषय में इस प्रकार लिखा है, “फिर मूसा ने सब इस्त्राएलियों को बुलाकर उनसे कहा, तुमने वह सब देख लिया है जो यहोवा ने तुम्हारी आंखों के सामने मिस्र देश में...किया उन बड़ी-बड़ी परीक्षाओं, उन महान चिन्हों तथा चमत्कारों को... । फिर भी यहोवा ने आज न तो तुमको समझ का मन, न देखने की आंखें और न सुनने के कान दिए हैं ।” ध्यान दीजिए कि. तुमने देखा... परन्तु तुम परमेश्वर के अलौकिक कार्य के बिना नहीं देख सकते हो ।
यही हमारी दशा है । हम अपने जीवनों में परमेश्वर के उद्बोधन, जान डालने वाले, कोमल बनाने वाले, नम्र बनाने वाले, शुद्ध करने वाले, प्रकाशित करने वाले कार्य के बिना अधर्मी, भ्रष्ट, कठोर और अनभिज्ञ हैं । परमेश्वर द्वारा हमारे हृदयों की आंखों को खोले बिना और हमें इन बातों के प्रति आत्मिक ज्ञान दिए बिना हम बाइबल की शिक्षाओं की अद्भुत बातों तथा महिमा को कभी नहीं देख पाएंगे ।
यह सिखाने और यह जानने का कारण यह है कि हम परमेश्वर के कार्य के लिए अभिलाषी और भूखा बनें और बाइबल पढ़ने में उसकी सहायता के लिए हम परमेश्वर से विनती और याचना करें ।
(मत्ती 16:17; 11:4; लूका 24:45; 1 कुरि. 2:14-16; यूहन्ना 3:6-8; रोमि 8:5-8 देखें) ।
3. हमें देखने में सहायता के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करनी होगी ।
तीसरी बात यह है कि यदि पवित्र होने, और प्रेमी होने और स्वर्ग जाने के लिए परमेश्वर के वचन के सत्य को जानना और संचित करना अति आवश्यक है, और यदि स्वाभाविक रूप से हम परमेश्वर के वचन की अद्भुत बातों को नहीं देख सकते और उसकी महिमा के प्रति आकर्षित महसूस नहीं कर सकते हैं, तो हम भयंकर दशा में हैं और हमें देखने में सहायता के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करने की आवश्यकता है । “मेरी आंखें खोल दे कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं ।”
दूसरे शब्दों में, मसीही जीवन में प्रार्थना अति आवश्यक है, क्योंकि हमारे जीवनों में वचन की सामर्थ्य को प्रदान करने के लिए यह द्वार खोलती है । परमेश्वर के वचन की महिमा अन्धे व्यक्ति के चेहरे पर सूरज के चमकने के समान है, यदि परमेश्वर उस महिमा के प्रति हमारी आंखें न खोले । और यदि हम उस महिमा को नहीं देखते हैं तो हम परिवर्तित नहीं होंगे (2 कुरिन्थियों 3:18; यूहन्ना 17:17), और यदि हम परिवर्तित नहीं हुए हैं, तो हम मसीही नहीं हैं ।
इफिसियों 1:18 में पौलुस इस रीति से प्रार्थना करता है । वह कहता है, “मैं प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हारे मन की आंखें ज्योतिर्मय हों, जिस से तुम जान सको कि उसकी बुलाहट की आशा क्या है... ।” दूसरे शब्दों में, ”इन बातों की शिक्षा मैंने तुम्हें दी है और तुमने उन्हें अपने बाहरी ज्ञानेन्द्रियों से ग्रहण किया है, परन्तु जब तक तुम उनकी महिमा को अपनी आत्मिक ज्ञानेन्द्रियों (तुम्हारे हृदय की आँखों) द्वारा अनुभव नहीं करोगे, तुम परिवर्तित नहीं होंगे । (इफि. 3:14-19; कुलु 1:9 तथा 3:16 देखें) । ये बातें पौलुस मसीहियों को लिख रहा है, जो कि यह दर्शाता है कि हमें निरंतर प्रार्थना करते रहना चाहिए जब तक कि हम स्वर्ग पहुंचकर आत्मिक आंखें न पाएँ ।
हमारे बाइबल पठन को समझने के लिए सात प्रकार की प्रार्थनाए
परन्तु क्योंकि हमारा बाइबल पाठ भजन 119:18 है, “मेरी आंखें खोल दे कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूँ,” हमें इस भजनकार को यह बताने देना चाहिए कि वह परमेश्वर के वचन के अपने पठन के विषय और सामान्य रूप से कैसे प्रार्थना करता है । अतः मैं भजन 119 पर एक सरसरी दृष्टि डालते हुए अन्त करना चाहूँगा और आपको वे सात प्रकार की प्रार्थनाओं को दिखाना चाहूँगा जिन्हें आप इस वर्ष अपने बाइबल पठन में उपयोग कर सकते हैं ।
हमें प्रार्थना करना चाहिए . . .
- कि परमेश्वर अपने वचन को हमें सिखाएँ । भजन 119:12, “मुझे अपनी विधियां सिखा ।” (पद 33,64,66,68,135 भी देखें) । परमेश्वर के वचन को सच में सीखना तब ही सम्भव है जब परमेश्वर शिक्षण के अन्य सभी माध्यमों में और द्वारा शिक्षक होता है ।
- कि परमेश्वर अपने वचन को हम से न छिपाएँ । भजन 119:19, “अपनी आज्ञाओं को मुझ से न छिपा ।” बाइबल हमें उस भंयकर ताड़ना या दण्ड के विषय चेतावनी देती है जब परमेश्वर का वचन हम से ले लिया जाएगा (आमोस 8:11; पद 43 भी देखें) ।
- कि परमेश्वर हमें उसका वचन समझाएँ । भजन 119:27, “अपने उद्देश्यों का मार्ग मुझे समझा” (पद 34,73,144,169) । यहाँ हम परमेश्वर से समझ मांगते हैं और कहते हैं कि उसके वचन को हमें समझाने के लिए जो कुछ आवश्यक है वह करे ।
- कि परमेश्वर हमारे हृदयों को अपने वचन की ओर लगाएँ । भजन 119:36, “मेरे मन को अनुचित लाभ की ओर नहीं, वरन् अपनी चेतावनियों की ओर लगा ।” हमारी सबसे बड़ी परेशानी हमारी बुद्धि नहीं, परन्तु हमारी इच्छा है -स्वभाव ही से हम परमेश्वर के वचन को पढ़ना और मनन करना और याद करना नहीं चाहते हैं । अतः हमें परमेश्वर से प्रार्थना करना चाहिए कि वह हमारे मन को अपने वचन की ओर लगाएँ ।
- कि परमेश्वर हमें जिलाए कि हम उसके वचन को मानें । भजन 119:88, “अपनी करूणा के अनुसार मुझे फिर से जिला, कि मैं तेरे मुँह की चेतावनियों को मानूं ।” वह जानता है कि परमेश्वर के वचन के प्रति मन लगाने और उसको मानने के लिए हमें जीवन और ताकत की आवश्यकता है । इसलिए वह परमेश्वर से इस बुनियादी आवश्यकता के लिए प्रार्थना करता है (पद 154 भी देखें) ।
- कि परमेश्वर अपने वचन में हमारे कदम स्थिर करे । भजन 119:133, “तू अपने वचन पर मेरे कदम स्थिर कर ।” न केवल समझ और जीवन के लिए हम परमेश्वर पर आश्रित हैं, परन्तु परमेश्वर के वचन पर चलने के लिए भी, कि वह हमारे जीवनों में स्थापित हो जाएँ । हम अपने आप यह नहीं कर सकते हैं ।
- कि जब हम भटक जाएँ तब परमेश्वर हमें ढूँढ़ ले । भजन 119:176, “मैं खोई हुई भेड़ के समान भटक गया हूं, अपने दास को ढूँढ़ लें ।” यह ध्यान देने योग्य है कि यह भक्त मनुष्य अपने भजन को एक पाप अंगीकार के साथ और इस आवश्यकता के साथ अन्त करता है कि परमेश्वर उसके पीछे-पीछे आए और उसे ढूँढ़ ले जाए । हमें बारम्बार यह प्रार्थना भी करना चाहिए ।
वचन हमारा धन
मैं यह कहते हुए समाप्त करना चाहूँगा कि जब कि हम 2011 में प्रवेश करते और पवित्र तथा प्रॆमी होना चाहते और अपने शहर और देश देश में परमेश्वर के उद्देश्यों के प्रति पूर्ण समर्पित होना चाहते हैं, तो हमें ऐसे लोग होना है जो अपने हृदयों में परमेश्वर के वचन को संचित रखते हैं, परन्तु इस से बढ़कर ऐसे लोग जो जानते हैं कि परमेश्वर के बिना उनकी क्या भयानक दशा है और यह कि परमेश्वर ने प्रार्थना को वह मार्ग ठहराया है जिसके द्वारा हमारी आँखें परमेश्वर के वचन की अद्भुत बातें देखें और इस प्रकार परिवर्तित हो जाएं । “ मेरी आंखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूँ। ”
भजन के लेखक ने कितनी लगन से इन प्रार्थनाओं को किया? हमें कितनी लगन से करना चाहिए? भजन 119:147 में एक उत्तर दिया है, “भोर होने से पहले ही उठकर मैं सहायता के लिए तुझे पुकारता हूं ।” वह भोर को ही उठ जाता है ! यह सबसे उच्च प्राथमिकता है । क्या आप भी इसे सर्वोच्च प्राथमिकता बनाएँगे?