परमेश्वर हमें सुसमाचार के द्वारा स्थिर/मजबुत करता है
अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्थात् यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्थिर कर सकता है, उस भेद के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा। 26 परन्तु अब प्रगट होकर सनातन परमेश्वर की आज्ञा से भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों के द्वारा सब जातियों को बताया गया है, कि वे विश्वास से आज्ञा माननेवाले हो जाएँ। 27 उसी अद्वैत बुद्धिमान परमेश्वर की यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन।।
आज हम कभी लिखी गई सबसे महान् पत्री के अन्तिम अनुच्छेद/पैराग्राफ को आरम्भ करते हैं, रोमियों के नाम पौलुस की पत्री। आप में से कम से कम कुछ ये प्रश्न पूछ रहे होंगे: क्या हमने रोमियों की पुस्तक को पूरा समाप्त कर लिया है ? साढ़े सात साल पहले, अप्रैल 26, 1998 को जब हमने उस पुस्तक को आरम्भ किया, आप में से अधिकांश यहाँ नहीं थे। बैतलहम में आपके आग़मन की तिथि आप रोमियों के उस अध्याय के द्वारा करते हैं जिसमें आप आये। अब अन्त निकट आ रहा है। सभी दुविधा को दूर करने और पारगमन के लिए आपको तैयार करने के लिए, मैं आपको योजना बताऊँगा।
आगमन में एक धीमा, क्रमिक अवतरण
ये अन्तिम अनुच्छेद (रोमियों 16: 25-27), पत्री के अनेकों कठिन विषयों को इकट्ठा ले आता है कि यह एक धीमे, क्रमिक अवतरण में आने के लिए एक बहुत अच्छा मार्ग उपलब्ध करता है। सात-साल की हमारी एक-साथ उड़ान, एक यकायक उतार के साथ अन्त नहीं होगी। ये एक बड़ा जैट विमान है और आका़श से एक ‘पाइपर-कब़’ के समान गिर नहीं जाता। मेरी योजना है कि इन तीन आयतों पर पाँच सप्ताह व्यतीत करूँ, जिसका अर्थ है कि रोमियों की पत्री को रविवार, दिसम्बर 24, क्रिसमस के एक दिन पहले समाप्त करने की आशा करता हूँ—क्रिसमस की पूर्व संध्या एक सटीक चरम प्रतीत होती है। क्या आप मेरे साथ प्रार्थना करेंगे कि परमेश्वर इन आग़मन-रविवारों (आगामी सप्ताह से आरम्भ होने वाले) को सर्वाधिक शक्तिशाली सत्र बनायेगा जो, हमने मसीह को ऊँचा उठाने, और लोगों को विश्वास में आते और ‘उसमें’ निर्मित होते जाते हुए, देखा है।
महिमा गान, परमेश्वर की महिमा की ओर ध्यान खींचते हैं
रोमियों की पत्री की अन्तिम तीन आयतें वो हैं जिन्हें हम सामान्यतया एक महिमा-गान कहते हैं। शब्द महिमा-गान (डॉक्सोलॉजी ), यूनानी शब्दों डॉक्सा , जिसका अर्थ है महिमा , और लोगोस़, जिसका अर्थ है शब्द , से आया है। अतः महिमा- गान एक वो शब्द है जो परमेश्वर को महिमा देता/आरोपित करता है। नया नियम के महिमा-गानों के पीछे दृढ़-धारणा यह है कि प्रत्येक चीज विद्यमान है और प्रत्येक बात घटित होती है, परमेश्वर की महिमा की ओर ध्यान खींचने के लिए। इसी कारण महिमा-गान, प्रचार या लेखन के चरमोत्कर्ष व अन्तिम क्षणों में प्रगट होने को प्रवृत्त होते हैं। मैं यह कहने में पौलुस के साथ जुड़ जाता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि वो सब जो अब तक मैंने कहा, परमेश्वर की महिमा की ओर सारा ध्यान खींचेगा।
अतः पौलुस पद 25 में अपना समापन का महिमा-गान आरम्भ करता है (अब जो तुम को ...’’), और जैसे ही वो ये लिखता है, उसके दिमाग में परमेश्वर को महिमा देने के बारे में महिमा-गान के अन्तिम शब्द हैं, परन्तु वह मात्र ‘‘अब उसकी महिमा हो’’ इतने साधारण रूप से समाप्त करने तक स्वयँ को नहीं ला पाता। इसकी जगह, वह ‘उसके’, अर्थात्, परमेश्वर पिता, और ‘उसके’ सुसमाचार के बारे में, जिसके बारे में वह सोलह अध्याय लिख रहा था, वाक्यांश पर वाक्यांश डालता है। तब वह 27 पद में महिमा आरोपण पर वापस आता है, पुस्तक के आखिरी शब्द। अतः आरम्भ और अन्त एक-साथ रखिये, 25 पद के आरम्भ से और पद 27 से: ‘‘अब जो ... (27) ‘‘उसी अद्वैत बुद्धिमान परमेश्वर की यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन।’’
ये एकमात्र स्थान नहीं है जहाँ पौलुस ने महिमा-गान का उपयोग किया है। प्रथम ग्यारह अध्यायों के चरम-बिन्दु पर रोमियों 11: 36 में एक था, इससे पूर्व कि जो उसने सिखाया था, उसके अधिक निकट के निहित अर्थों को वह खोलना आरम्भ करे: ‘‘क्योंकि उस की ओर से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिये सब कुछ है: उस की महिमा युगानुयुग होती रहे: आमीन।’’ (फिल्लिपियों 4: 20 और इफिसियों 3: 20-21 भी देखिये)।
और पौलुस अकेला नहीं था जो महिमा-गानों से प्यार करता था। 1 पतरस 4: 11 में पतरस ने कहा, ‘‘महिमा और साम्राज्य युगानुयुग उसी का है। आमीन।’’ प्रॆरित यूहन्ना ने प्रकाशितवाक्य 1: 5-6 में कहा, ‘‘यीशु मसीह की ओर से, जो विश्वास- योग्य साक्षी और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहलौठा, और पृथ्वी के राजाओं का हाकिम है, तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे: जो हम से प्रेम रखता है, और जिस ने अपने लहू के द्वारा हमें पापों से छुड़ाया है। और हमें एक राज्य औरअपने पिता परमेश्वर के लिये याजक भी बना दिया; उसी की महिमा और पराक्रम युगानुयुग रहे। आमीन।’’ और प्रभु के भाई यहूदा ने, सर्वाधिक प्रसिद्ध महिमा-गान लिखा (यहूदा 1: 24-25), ‘‘अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपनी महिमा की भरपूरी के साम्हने मगन और निर्दोष करके खड़ा कर सकता है। उस अद्वैत परमेश्वर हमारे उद्धारकर्ता की महिमा, और गौरव, और पराक्रम, और अधिकार, हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जैसा सनातन से है, अब भी हो और युगानुयुग रहे। आमीन।’’
अतः जब कभी आप एक महिमा-गान को उच्चारित किये जाते या गाये जाते हुए सुनते हैं, तो जान लीजिये कि यह बाइबल-शास्त्रीय, प्रेरितों द्वारा कहे जाने का ढंग है जो सर्व-महत्वपूर्ण और सर्व-स्वीकार्य सत्य में जड़ पकड़े हुए है कि प्रत्येक वस्तु विद्यमान है कि परमेश्वर की महिमा की ओर ध्यान खींचे।
यही है जो हम विगत पाँच सप्ताहों में रोमियों की पत्री में से देख रहे हैं। एक महिमा-गान के लिए ये अत्यधिक लम्बा तथा परमेश्वर और सुसमाचार के बारे में सत्य से घनीभूत है। आप सुनिश्चित होंगे कि जब पौलुस वो समाप्त करता है जो उसके द्वारा कभी भी लिखी गई पत्रियों में से सबसे लम्बी और महान पत्री थी, वह व्यर्थ के शब्दों का उपयोग नहीं करेगा। हर एक शब्द का महत्व है। रोम-वासियों के लिए ये उसके आखिरी शब्द हैं। वे आपके लिए उसके आखिरी शब्द हो सकते थे। मैं आशा करता हूँ कि आप सावधानीपूर्वक सुनेंगे और आशा करता हूँ कि आप वर्ष के इन अन्तिम सप्ताहों में इस महिमा-गान के सभी पाँच कोणों को देखने के लिए वापस आयेंगे।
परमेश्वर सुसमाचार का उपयोग विश्वासियों को स्थिर/मजबूत करने के लिए करता है
आज, मैं उस कथन पर मुख्यतः ध्यान देना चाहता हूँ कि परमेश्वर उसके सुसमाचार के अनुसार ‘उसके’ लोगों को स्थिर करता है। पद 25: ‘‘अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्थात् यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्थिर कर सकता है।’’ हर एक बात जो पौलुस, पद 25 और 26 में कहता है, उस सुसमाचार का आवरण हटाना है, जो विश्वासियों को स्थिर /मजबूत बनाता है। यह सुसमाचार जो स्थिर/मजबूत बनाता है, ‘‘यीशु मसीह के विषय का प्रचार,’’ (पद 25ब) है। यीशु, सुसमाचार की केन्द्रीय वास्तविकता है। यह सुसमाचार है, ‘‘उस भेद के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा’’ (पद 25स)। यही भेद है कि गैर-यहूदी--सारी जातियाँ--यीशु में विश्वास के द्वारा यहूदी विश्वासियों के साथ संगी-स्वदेशी हैं (इफिसियों 3: 6)। वो शुभ-समाचार ‘‘अब प्रगट होकर ... बताया गया है’’ (पद 26 अ), और यद्यपि यह बीते युगों में छिपा रहा, यह पुराना नियम के ‘‘भविष्यवक्ताओं की पुस्तकें’’ (पद 26ब) ही हैं, जिसे पौलुस ‘‘सब जातियों’’ (पद 26ब) पर उस भेद को प्रगट करने के लिए उपयोग करता है। और सारी जातियों के लिए इस शुभ-सुसमाचार था का सार था, ‘‘सनातन परमेश्वर की आज्ञा’’ और यह ‘‘विश्वास से आज्ञा मानने’’ (पद 26स) का लक्ष्य रखता है।
पद 25 में वो सब, सुसमाचार का एक खोलना है, जिसे परमेश्वर विश्वासियों को स्थिर करने के लिए उपयोग करता है ताकि वे निश्चित ही विश्वास की आज्ञाकारिता में दृढ़ रहेंगे और सम्पूर्ण ध्यान परमेश्वर की महिमा की ओर खींचेंगे। अतः आज केन्द्र-बिन्दु इस आश्चर्यकारी तथ्य पर है: इस पुस्तक के अन्त में, जैसे ही पौलुस अपने होठों पर अन्तिम महिमा-गान के शब्द लाता है, जो वह परमेश्वर पर आरोपित करना चाहता है, वो ये कि परमेश्वर आपको अपने सुसमाचार के द्वारा स्थिर/मजबूत करने में सक्षम है। जब वह परमेश्वर की महिमा की ओर सारा ध्यान बुलाते हुए अन्त करता है, वह ऐसा इस तरीके से करता है जो परमेश्वर द्वारा आपको, उसके लोगों को जो सुसमाचार पर विश्वास करते हैं, स्थिर करने में, उस महिमा को और अधिक चमकीला बनाता है।
परमेश्वर जो 'उसकी' महिमा के लिए स्थिर/मजबूत करता है
अब यहाँ पर कुछ ऐसा अद्भुत है कि मैं इतना शीघ्र उस से आगे नहीं बढ़ जाना चाहता कि कहीं आप इससे चूक न जायें। सो जो स्पष्ट है मुझे उसे पुनः कहने दीजिये और फिर जो कम स्पष्ट उसे बाद में सामने लाने दीजिये। स्पष्ट तथ्य ये है कि परमेश्वर जो करता है या कर चुका है जो उसकी महिमा की ओर ध्यान खींचता है, इसके बारे में वे सभी चीजें जो वह कह सकता था, परमेश्वर के दर्जनों महान् कार्यों में से और परमेश्वर की सभी महान् योग्यताओं में से, वह एक चीज को विशिष्टता प्रदान करने का चुनाव करता है: ‘‘अब जो तुम को ... स्थिर कर सकता है ... युगानुयुग महिमा होती रहे।’’ वह अवश्य कहता है कि परमेश्वर बुद्धिमान है, और यह कि परमेश्वर ने कुछ चीज युगों से छिपा रखा था, और यह कि ‘उसने’ जाति-जाति की ख़ातिर कुछ चीज प्रगट किया, और यह कि ‘उसने’ ये सब ‘उसकी’ सनातन आज्ञा के द्वारा किया। हाँ। लेकिन जिस तरह से पौलुस ने इस महिमा-गान को व्यवस्थित किया है, वो सब इस एक मुख्य बात को बल देने व समझने में सहायता कर रहा है: परमेश्वर आपको स्थिर/मजबूत करने में सक्षम है। ‘‘अब जो तुम को ... स्थिर कर सकता है ... युगानुयुग महिमा होती रहे।’’
अब वो एक सुस्पष्ट तथ्य है। अब यहाँ वो जो कम स्पष्ट है किन्तु यदि कोई जन एक बार इसे हमारे ध्यान में लाता है तो यह बिल्लौर के समान स्वच्छ है। इतिहास में अनेकों राजाओं ने और आज के बहुत से तानाशाह, महिमा पाने को प्रवृत्त होते हैं। वे चाहते हैं कि वे मजबूत और धनी और बुद्धिमान के रूप में जाने जाएं। और यह उन्होंने किस प्रकार से किया है?
उनके नागरिकों को कमजोर और निर्धन और अशिक्षित रख कर। पढ़े-लिखे लोग एक तानाशाह के लिए एक आशंका/ भय का कारण रहते हैं। उन्नति करता हुआ एक मध्यम-वर्ग, एक तानाशाह के लिए भय का कारण है। बलवान लोग एक तानाशाह की ताक़त के लिए भय का कारण होते हैं। सो वे क्या करते हैं ? वे लोगों को दुर्बल रखने के द्वारा अपनी स्वयँ की ताकत को सुरक्षित रखते हैं। वे टूटे हुए लोगों की पीठ पर खड़े होने के द्वारा महिमा पाते हैं। जरा उज़बेक्सितान में इस्लोम कारिमोव का शासन देखिये। और हम कई अन्य का उल्लेख कर सकते हैं--छोटे राजा, जो अपने लोगों को कमजोर रखते हैं ताकि वे मजबूत और धनी हो सकें।
सुसमाचार की सामर्थ्य में परमेश्वर की महिमा
लेकिन अब उस तरीके की तुलना कीजिये जिस से पौलुस, परमेश्वर की महिमा की ओर ध्यान खींचता है। यदि किसी राजा को कभी ये अधिकार रहा है कि एक बलवा करने वाले लोगों की पीठ पर पैर रखने के द्वारा अपनी सारी महिमा प्रदर्शित करे, तो ये परमेश्वर है। किन्तु ‘वह’ करता क्या है ? ‘वह’ अपने लोगों को मजबूत करने के द्वारा अपनी महिमा प्रदर्शित करता है। ‘‘अब जो तुम को ... स्थिर कर सकता है ... युगानुयुग महिमा होती रहे।’’ परमेश्वर ‘उसके’ सुसमाचार से आपको मजबूत बनाकर ‘उसकी’ महिमा को आवर्धित करता/बढ़ाता है। आपकी ताकत से, परमेश्वर जरा भी आशंका/धमकी महसूस नहीं करता। वास्तव में, यीशु मसीह के सुसमाचार के द्वारा आप विश्वास और आशा और प्रेम में जितना अधिक मजबूत होते हैं, उतना ही अधिक महान ‘वह’ प्रगट होता है। अपने लोगों को दुर्बल रखने के द्वारा परमेश्वर अपनी सामर्थ्य को सुरक्षित नहीं रखता। ‘वह’ अपनी सामर्थ्य की महिमा को, अपने लोगों को मजबूत बनाकर, आवर्धित करता है। ‘‘अब जो तुम को ... स्थिर कर सकता है ... महिमा होती रहे।’’
इसलिए, जब पौलुस, परमेश्वर की महिमा को सुसमाचार का अन्तिम लक्ष्य बनाता है--जब वह परमेश्वर की महिमा के परम मूल्य की ओर ध्यान खींचने के द्वारा अपनी सबसे महान पत्री को समाप्त करता है--ये हमारे लिए बुरा समाचार नहीं है। जब तक कि हम उस महिमा को अपने स्वयँ के लिए न चाहें । वो हमारे लिए बुरा समाचार क्यों नहीं है ? इसलिए कि हमारा परमेश्वर, ‘उसके’ अपात्र लोगों को मजबूत बनाने के द्वारा, हमारा ध्यान ‘उसकी’ महिमा की ओर खींचता है।
परमेश्वर की महिमा जितनी अधिक विशाल, उतने ही अधिक संसाधन हमारी सामर्थ्य के लिए। परमेश्वर की महिमा जितनी अधिक बहुविध और अद्भुत, उतना ही अधिक बहुविध और अद्भुत हमारी सामर्थ्य का स्रोत। ‘‘अब जो तुम को स्थिर कर सकता है ... महिमा होती रहे।’’
सुसमाचार में सामर्थ्य
पौलुस का अर्थ किस प्रकार की सामर्थ्य से है, जो परमेश्वर हमें देने में सक्षम है ? अच्छा, परमेश्वर जिस भी प्रकार की सामर्थ्य चाहे ‘वह’ हमें दे सकता है—‘‘मैं ... अपने परमेश्वर की सहायता से शहरपनाह को लाँघ जाता हूँ।’’ (भजन 18: 29) लेकिन यहाँ पर उसका अर्थ उसी प्रकार की सामर्थ्य से है जिसका उल्लेख उसने रोमियों 1: 11-12 में किया गया है, ‘‘क्योंकि मैं तुम से मिलने की लालसा करता हूँ, कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक वरदान दूँ जिस से तुम स्थिर (स्टेरिकथेनाई, वही शब्द जो 16: 25 में है) हो जाओ--अर्थात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पाऊँ।’’ इस सामर्थ्य का सत्व/सार, यीशु मसीह में विश्वास है।
सुसमाचार में स्त्रियों के लिए सामर्थ्य
ये ऐसी सामर्थ्य नहीं है जिसे संसार जानता या देता है। स्त्रियो, किशोर-वय की लड़कियो, जब आप एक सशक्त स्त्री होने के बारे में सोचती हो तो आप क्या सोचती हो ? या छोटी लड़कियो, जब आप एक सशक्त स्त्री बनने तक बढ़ने के बारे में सोचती हो, तो आप क्या सपना देखती हो ? इसे स्पष्ट कर लेना महत्वपूर्ण है क्योंकि परमेश्वर चाहता है कि आप मजबूत रहें, और बाइबल और अनुभव दोनों आपको बताते हैं कि एक अर्थ में आप दुर्बल पात्र हो (1 पतरस 3: 7)--संसार में 95 प्रतिशत वयस्क नर, 95 प्रतिशत वयस्क नारियों से शारीरिक रूप से अधिक मजबूत हैं। जब आप एक मजबूत स्त्री बनने के बारे में सपना देखती हैं, आपको क्या सपना देखना चाहिए ?
संसार आपको आपकी मजबूती/ताकत खोजने के तीन तरीके बतायेगा। एक है, कामुक बने रहने के द्वारा, कामुक वेश भूषा पहनना, कामुक व्यवहार करना, क्योंकि पुरुष ऐसे बुद्धु हैं, जिनपर आप उस तरीके से अधिकार पा सकती हैं। दूसरा है, हठधर्मी, प्रभावशाली, उद्यमशील, आत्म-विश्वासी बने रहने के द्वारा। और तीसरा, चतुर रहिये और सभी प्रभावशाली स्रोतों के माध्यम से ताकतवर स्थितियों की ओर बढि़ये। इनमें से कोई भी वो सामर्थ्य नहीं है जिसके बारे में पौलुस बता रहा है जब वह कहता है, ‘‘अब जो तुम को ... स्थिर (मजबूत) कर सकता है ...’’
पौलुस के दिमाग में वो भीतरी ताकत है, जिसका उल्लेख पतरस स्त्रियों के लिए 1 पतरस 3: 6 में करता है, जहाँ पतरस स्त्रियों से कहता है कि वे सारा और पुराने समय की स्त्रियों के समान बनें: ‘‘तुम भी यदि भलाई करो, और किसी प्रकार के भय से भयभीत न हो तो उस की बेटियां ठहरोगी।’’ और उस प्रकार की सामर्थ्य जिसके बारे में नीतिवचन 31: 25 कह रहा है, जब ये कहता है, ‘‘वह बल और प्रताप का पहनावा पहने रहती है, और आनेवाले काल के विषय पर हंसती है।’’
दूसरे शब्दों में स्त्रियो, जवान लड़कियो, परमेश्वर में ऐसा आत्मविश्वासी बने रहने का सपना देखो, और यह कि विश्व के राजा की पुत्री के रूप में परमेश्वर में आप कौन हैं, और ‘उसने’ आपके लिए क्या किया है और यीशु मसीह में आपके लिए करने की और बने रहने की प्रतिज्ञा करता है, ताकि आप परमेश्वर को छोड़ किसी भी चीज से न डरें और आने वाले समय पर हंसें--चाहे वो कुछ भी क्यों न ले आये। कामुकता--मैं आपको वचन देता हूँ, आप इसे खो देंगी --वो पुरुष जो आप इसके द्वारा पाती हैं, वह उस प्रकार का पुरुष नहीं है जो आप चाहती हैं। हठधर्मिता से, आप उस प्रकार के लोगों को पराया कर देगी जिन्हें आप चाहती हैं कि आपके चारों ओर रहें। ताकत के महल, वे घास के समान हैं: पवन इसके ऊपर से गुजरती है और ये खत्म हो जाते हैं । लेकिन वो सामर्थ्य जो परमेश्वर सुसमाचार के द्वारा देता है सदा बनी रहती है। ‘‘अब जो तुम को मेरे सुसमाचार ... के अनुसार स्थिर कर सकता है, ... युगानुयुग महिमा होती रहे।’’
सुसमाचार में पुरुषों के लिए सामर्थ्य
पुरुषो, लड़कों, आपके बारे में क्या ? जब आप सशक्त होने का सपना देखते हैं तो आप किस बात का सपना देखते हैं ? यह कि किसी दिन आप एक ‘अल्टॉइड’ का डिब्बा पकड़े हों और ‘‘असाधारण रूप से मजबूत’’ दिखें (एक टेलिविज़न विज्ञापन) ? अथवा एक खेल में सर्वोत्तम खिलाड़ी होने का ? या सबसे चतुर स्टॉक-दलाल बनने और पैसे की ताकत को नियंत्रित करने का ? या शिक्षित होने और ‘अटलान्टिक मासिक’ पढ़ने और ‘एन.आर.पी.’ सुनने और पानगोष्ठी (कॉकटेल) वार्तालापों में दुरूह नाम व्यक्त करने का ?
नहीं। केवल एक मूर्ख ही घटती हुई ताकत चाहता है। केवल एक मूर्ख ही ऐसी ताकत चाहता है जो उस समय जाती रहती है जब आपको इसकी सबसे अधिक आवश्यकता हो। मैं आपको उस प्रकार की ताकत बताऊंगा जो परमेश्वर सुसमाचार के माध्यम से देने में समर्थ है। ये वो सामर्थ्य है जो आपकी पत्नी और परिवार को ध्यान-मनन की ओर ले जाती है; और जब उच्च-शिक्षित, धर्मविरोधी, विशिष्टवर्गीय जटिलताएं आपके चारों ओर हों तो सत्य का एक सरल शब्द कहने की सामर्थ ; जब हर कोई आप को निर्बल कह रहा हो तो अपने स्थान पर मजबूती से खड़े रहकर किसी पापमय व्यवहार के प्रति नहीं कहने की सामर्थ ; जब आप महसूस करें कि आपको कोई प्रेरणा नहीं मिल रही है तब किसी न्याय और दया और सत्य के लिए, सभी बाधाओं के विरुद्ध आगे बढ़ते रहने की सामर्थ्य।
सुसमाचार में सभी के लिए सामर्थ्य
परमेश्वर आप सभी को--पुरुषो और स्त्रियों को --मजबूत करने के योग्य है--मसीह में विश्वास करने के द्वारा, प्राण की एक प्रकार की अन्दरूनी सामर्थ्य के द्वारा, जो आपको एक व्हील-चेयर में उन दस हजार व्यावहारिक जैली-फिश से अधिक मजबूत बनाती है जो दो पावों पर आधुनिक संस्कृति की धारा के साथ बह रही हैं। हम जो चाहते हैं वो उस प्रकार की सामर्थ्य है जो यहाँ होगी, जब हम लकवाग्रस्त हैं और केवल अपनी पलकों के द्वारा प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं। और हम जानते हैं कि ये कहाँ से आती है: ‘‘अब जो तुम को ... स्थिर कर सकता है, ... युगानुयुग महिमा होती रहे।’’
सुसमाचार के लिए हमारी आवश्यकता से हम कभी आगे नहीं बढ़ निकलते
और अब एक अन्तिम निर्णायक टिप्पणी जो हम सात वर्षों से खोल रहे थे और रोमियों की पत्री से चार और धर्मोपदेशों के लिए खोलते रहेंगे और मैं प्रार्थना करता हूँ प्रत्येक धर्मोपदेश के लिए जब तक कि यीशु आते हैं-- परमेश्वर हमें सुसमाचार के द्वारा स्थिर/मजबूत करता है: ‘‘अब जो तुम को मेरे सुसमाचार ... के अनुसार स्थिर कर सकता है।’’
सुसमाचार का मर्म ये है कि यीशु मसीह, वो धार्मिक जन, हमारे पापों के लिए मरा और फिर जी उठा, सनातन के लिए ‘उसके’ शत्रुओं के ऊपर जयवन्त हुआ, ताकि उनके लिए जो विश्वास करते हैं अब कोई दण्ड की आज्ञा नहीं, अपितु सदाकाल का आनन्द है। आप कभी, कभी, कभी भी सुसमाचार के लिए आपकी आवश्यकता से आगे नहीं बढ़ सकते। ऐसा नहीं होता कि आप अपना मसीही जीवन इस से आरम्भ करते हैं और फिर इसे पीछे छोड़ कर किसी और चीज से मजबूत होते हैं। परमेश्वर सुसमाचार के द्वारा हमारे मरने के दिन तक हमें स्थिर/मजबूत करता है।
कैन्सर के ऊपर सुसमाचार सामर्थ्य
मैं आपको मेरे स्वयँ के जीवन से, समापन करने वाला एक दृष्टान्त दूंगा—और आप में से अनेकों के पास बताने के लिए इससे बड़ी कहानियाँ हैं जो मैं बता रहा हूँ क्योंकि आपकी स्थिरता/सामर्थ्य अधिक गहराई से परखी गई है। लेकिन मैं आपको याद दिलाऊंगा कि परमेश्वर ने विगत फरवरी में मेरे लिए क्या किया जब मुझ में कैन्सर का पता चला। परमेश्वर ने मुझे सुसमाचार के द्वारा मजबूत किया। आपको वे आयतें याद होंगी जो ‘उसने’ उपयोग की थीं। कोई भी मेरे लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण नहीं थी। पहला थिस्सलुनीकियों 5: 9-10, ‘‘परमेश्वर ने हमें क्रोध के लिये नहीं, परन्तु इसलिये ठहराया कि हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा उद्धार प्राप्त करें। वह हमारे लिये इस कारण मरा, कि हम चाहे जागते हों, चाहे सोते हों: सब मिलकर उसी के साथ जीएँ।’’
इस कारण जो कुछ मुझ में है, कहता है, और जब अन्तिम निदान आयेगा, कहने की आशा करता है, ‘‘अब जो मुझ को मेरे सुसमाचार ... के अनुसार स्थिर कर सकता है, ... यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन।।
हमारे परमेश्वर ने पाप और शैतान और नरक और मृत्यु को पराजित करने हेतु इतिहास में कार्य किया है। ‘उसने’ ऐसा यीशु मसीह के सुसमाचार के द्वारा किया है। अपने जीवन की महानतम् निधि के रूप में इस सुसमाचार का आलिंगन कीजिये। परमेश्वर आपको स्थिर/मजबूत बनाने में, अपनी महिमा को आवर्धित करेगा।