पूर्वज्ञात, पूर्वनिर्धारित, मसीह के स्वरूप में बनाए गए
28 और हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं; अर्थात् उन्हीं के लिए जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। 29 क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों, ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। 30 फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया।
हमने रोमियों 8:28 पर तीन सन्देश दिए (“और हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्वर से प्रॆम रखते हैं उनके लिए वह सब बातों के द्वारा भलाई को उत्पन्न करता है, अर्थात उन्हीं के लिए जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए गए हैं”) और हमने कहा कि रोमियों 8:28 वास्तव में पौलुस के रोमियों 8:18 के तर्क का एक हिस्सा था, “क्योंकि मैं यह समझता हूं कि वर्तमान समय के दुखों की तुलना करना आनेवाली महिमा से जो हम पर प्रकट होने वाली है, उचित नहीं है ।” दूसरे शब्दों में, हमारे सभी दुख सहन करने योग्य हैं, क्योंकि सब बातें (ये दुख भी), हमारे लिए भलाई उत्पन्न करॆंगी।
अब हम अगले पद (29) को देखेंगे जो “क्योंकि” शब्द से आरम्भ होता है। हम पौलुस की भारी नीवों को देखते हैं - पद 28 के अन्तर्गत उसके स्तम्भों को देखते हैं -सत्य और सच्चाई जो इसे स्थिर रखते हैं और गिरने से बचाते हैं - और इसके साथ हमें भी गिरने से बचाते हैं।
उसने कहा, हम जानते हैं कि सब बातों के द्वारा -मीठी बातों और कड़वी बातों के द्वारा परमेश्वर हमारे लिए भलाई ही उत्पन्न करता है (पद 28)। “क्योंकि” - पद 29 जो प्रतिज्ञा का आधार है - “क्योंकि जिनके विषय में उसे पूर्वज्ञान था, उसने उन्हें पहले से ठहराया भी कि वे उसके पुत्र के स्वरूप में हो जाएं, जिससे कि वह बहुत - से भाइयों में पहलौठा ठहरे ।” यहां पर हम परमेश्वर के उन तीन महान कार्यों को देखते हैं जिन पर आज प्रातः हम विचार करॆंगे -परमेश्वर के वे तीन कार्य जो इसलिए किए गए कि आपको और अधिक विश्वास हो कि सब बातों के द्वारा परमेश्वर आपके लिए भलाई ही उत्पन्न करता है और इस जीवन के समस्त दुख उस आने वाली महिमा की तुलना में कुछ भी नहीं हैं (8:17)।
परमेश्वर के इन तीन कार्यों को इन शब्दों में देखा जा सकता है - (1) “उसे पूर्व ज्ञान था”, (2) “उसने उन्हें पहले से ठहराया”, और (3) “कि वे उसके पुत्र के स्वरूप में हो जाएं।” हम जानते हैं कि सब बातें मिलकर भलाई उत्पन्न करती हैं क्योंकि परमेश्वर को हमारा पूर्वज्ञान है, उसने हमें पहले से ठहराया है, और वह हमें मसीह के स्वरूप में बना रहा है। इन में से दो अतीत हैं (पूर्वज्ञान और हमें पहले से ठहराया जाना) और इन में से एक वर्तमान और भविष्य है (हमारा मसीह के स्वरूप में बनाया जाना)।
अब मैं अभी कम से कम दो कारणों की कल्पना कर सकता हूं कि आप में से कुछ लोग क्यों यह कह सकते हैं कि इस से आपको कोई रूचि नहीं है। पहला, आप में से कुछ यह कह सकते हैं, “सच कहूं तो मुझे उन निर्णयों से कोई मतलब नहीं जो बहुत समय पूर्व लिए गए थे -जैसे कि सृष्टि से पहले परमेश्वर के पूर्वज्ञान और पूर्वनिर्धारण में। मुझे आज और अभी से मतलब है। और इस से बढ़कर मुझे पूर्वनिर्धारण जैसे बाइबल के सिद्धान्तों के विवादों में नहीं उलझना है ।” दूसरा, आप में से कुछ यह भी कह सकते हैं, “सच कहूं तो मैं मसीह के समान बनना ही नहीं चाहता। एक कारण यह है कि, उसने कभी यौन सुख नहीं लिया, और क्या कहूं, वह इतना गम्भीर रहता था कि पता नहीं कभी उसने मौज मस्ती भी की या नहीं, और वह इतना विवादास्पद था कि उसने स्वयं को मरवा डाला। अतः यदि यीशु के समान बनना मुझे यह विश्वास दिलाने के लिए है कि सब बातें मिलकर मेरे लिए भलाई उत्पन्न करेंगी, तो रहने दीजिए, ऐसा नहीं होता है ।”
मैं इन दो विचारॊं के विषय कुछ कहना चाहूंगा।
“मैं अतीत में किए गए निर्णयों के बारे में परवाह नहीं करता”
यदि आज सुबह कोई आकर आपसे यह कहता “मैं तुम्हें दस लाख रूपए दूंगा ।” आपको सन्देह करने का अधिकार होगा। परन्तु यदि वह एक पुराना मुड़ा तुड़ा पेपर निकाल कर दिखाता और कहता, “मेरे अमीर पिता का कई माह पहिले निधन हो गया और उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा है कि तुम्हें मेरी विरासत का एक हिस्सा मिलेगा, जो कि दस लाख रूपए है।” तब आप क्या यह कहेंगे, “इतने लम्बे समय पहले लिए गए निर्णयों में मैं विश्वास नहीं करता। मुझे आज और अभी से मतलब है। और इसके अलावा, पुराने दस्तावेज़ों का अर्थ निकालना, विशेषकर, वसीयत का, बहुत विवादास्पद हो सकता है। इसलिए इस दस लाख के विषय भूल जाना चाहिए ? ” मैं आपको वचन देता हूं कि परमेश्वर को जो पूर्वज्ञात था और उसने जो पूर्वनिर्धारित किया वह दस लाख रूपए को पाने से बढ़कर आज आपके लिए लाखों गुना प्रासंगिक है ।
“मैं मसीह के समान नहीं बनना चाहता”
और यदि आप कहते हैं, “सच कहूं तो मैं मसीह के समान नहीं बनना चाहता”, तो शायद इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं क्योंकि आप उसके स्वरूप में बनने के बारे में वह सोच रहे हैं जो न केवल गलत है, परन्तु बहुत संकीर्ण भी है।
मरने पर क्या होगा? क्या आप मृत्यु पश्चात मसीह के समान होना चाहते हैं? क्या आप संसार के न्यायी द्वारा ठुकराए जाना और अनन्त दण्ड पाना चाहेंगे -इसलिए कि आपने उसके पुत्र को अस्वीकार किया? या फिर आप मृतकॊं में से जिलाए जाना, और प्रॆम पाना तथा ग्रहण किए जाना चाहेंगे? क्या आप मसीह के समान जीवित किया जाना चाहते हैं या फिर नाश हो जाना? यह कोई छोटा प्रश्न नहीं है। और मैं आप से आग्रह करता हूं कि ध्यान दें।
अतः आइए पहले हम परमेश्वर के उन दो कार्यों को देखें जो परमेश्वर आज कर रहा है और कल करेगा।
“क्योंकि जिनके विषय में उसे पूर्वज्ञान था”
पद 29: “क्योंकि जिनके विषय में उसे पूर्वज्ञान था, उसने उन्हें पहले से ठहराया भी कि वे उसके पुत्र के स्वरूप में हो जाएं ।” “पूर्वज्ञान” से क्या अर्थ है? कुछ लोगों ने इसका यह अर्थ निकाला है कि परमेश्वर पहले से यह देख लेता है कि कौन उस पर विश्वास लाएगा और वे ही लोग हैं जिन्हें वह मसीह के स्वरूप में होने के लिए पहले से ठहराता है। परन्तु इसमें ऐसी दो बातें हैं जो सच नहीं हैं। एक यह कि जो विश्वास परमेश्वर पहले से देखता है वह पूर्णतः और निर्णायक रूप से हमारा काम है, न कि उसका। दूसरे शब्दों में, इस व्याख्या का अर्थ यह है कि परमेश्वर हममें विश्वास उत्पन्न नहीं करता वह उस विश्वास को केवल पहले से जानता है, जिसे हम लाते हैं।
परन्तु बाइबल यह नहीं सिखाती है, न तो किसी अन्य स्थल पर (फिलिप्पियॊं 1:29; इफिसियों 2:8-9; 2 तिमुथियुस 2:24-26; मत्ती 16:17) न ही इस सन्दर्भ में। जब रोमियॊं 8:30 पौलुस कहता है कि, “फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया ।” अतः वह यह कह रहा है कि सभी बुलाए हुए धर्मी ठहराए गए हैं। परन्तु धर्मी ठहराए जाने के लिए हमें विश्वास करना है (रोमियों 5:1)। अतः इसलिए वह कह रहा है वे सब जो बुलाए गए हैं विश्वास करते और धर्मी ठहराए गए हैं। परन्तु वह यह कैसे कह सकता है कि जो बुलाए गए हैं वे सब ही विश्वास करते हैं ?कारण यह है, जैसा कि मैंने पद 28 में “बुलाए गए ” की व्याख्या में बताने का प्रयास किया है, कि यह बुलाहट परमेश्वर का सामर्थपूर्ण कार्य है कि जो वह मांग करता है उसे पूरा करे। यह एक प्रभावपूर्ण बुलाहट है। यह वह बुलाहट है जो उस बात की सृष्टि करती है जिसकी वह आज्ञा देती है। यह इस बुलाहट के समान है, “लाज़र, बाहर निकल आ ! ” और वह मृतक जी उठता है। अतः अर्थ यह है कि धर्मी ठहराए जाने के लिए जो विश्वास मैं करता हूं वह मैं स्वयं से नहीं करता। परमेश्वर मुझे इसे करने की शक्ति देता है। परमेश्वर मुझे सामर्थ देता है। मुझे यह करना चाहिए। विश्वास तो मैं ही करता हूं । परन्तु मेरा यह विश्वास करना परमेश्वर का एक दान है। इसके लिए मैं श्रेय नहीं लेता। मैं इसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद देता हूं। मैं शुरू से अन्त तक प्रभु के अनुग्रह द्वारा उद्धार पाता हूं।
अतः जब रोमियों 8:29 कहता है कि “परमेश्वर को पूर्वज्ञान था”, यह सोचना गलत है कि इसका अर्थ यह है कि उसने पहले से ही यह देख लिया था कि वे उनकी अपनी सामर्थ से विश्वास करॆंगे। उसने यह सामर्थ दी है, और इसलिए यहां हम जो करते हैं उसे पहले से देख लेने से बढ़कर कुछ हो रहा है।
यहां इस दृष्टिकोण के विषय एक और गलत विचार है जो यह सोचना है कि “पूर्वज्ञान ” होने का जो अर्थ पुराना तथा नया नियम के अनेक अनुच्छेदों में है वह यहां नहीं है, जो कि इस अनुच्छेद को और अधिक सुसंगत अर्थ देगा। “जानना” शब्द के इन उपयोगों को देखें और स्वयं से यह पूछें कि प्रत्येक क्या अर्थ रखता है। उत्पत्ति 18:19 में परमेश्वर इब्राहीम से कहता है, “मैंने उसे इसलिए चुना है कि वह अपने बच्चों और घरानों को जो उसके पीछे रह जाएंगे, आज्ञा दे कि वे...यहोवा के मार्ग पर स्थिर बने रहें ।” अधिकांश हिन्दी अनुवादों में आप “चुना है” पाते हैं जिसका अर्थ “जाना” है। आमोस 3:2 में परमेश्वर इस्त्राएल की प्रजा से कहता है, “पृथ्वी के सारे कुलों में से मैंने केवल तुम्हीं पर मन लगाया है”। वह समस्त कुलों के विषय जानता था परन्तु उसने केवल इस्त्राएल को चुना। मत्ती 7:23 में यीशु न्याय के दिन पाखण्डियों से कहता है, “मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्मियों, मुझ से दूर हटो ।” भजन 1:6 कहता है, “क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टॊं का मार्ग नष्ट हो जाएगा ।” वह दुष्टों के भी मार्ग के विषय जानता है। परन्तु वह धर्मियों के मार्ग को अनुमोदन करने, पहचानने और प्रॆम करने के आशय में जानता है। होशे 13:5 में परमेश्वर इस्त्राएल से कहता है, “मैंने तेरी देखभाल मरुस्थल में अर्थात सूखे प्रदेश में की”, अर्थात उसने तेरी दुर्दशा पर ध्यान दिया और तेरी देखभाल की। और उत्पत्ति 4:1 कहता है, “आदम अपनी पत्नी हव्वा के पास गया। वह गर्भवती हुई और कैन को जन्म दिया।” अर्थात उसने हव्वा को अपनाया, और उसे घनिष्ठ रूप से जाना और प्रॆम किया ।
इन सभी अनुच्छेदों के कारण मैं सोचता हूं कि जॉन स्टॉट और जॉन मूरे दोनॊं का कहना सही था, “जानना... व्यवहारिक रूप से “प्रॆम के समानार्थी के रूप में उपयोग किया गया है... “जिनके विषय में उसे पूर्वज्ञान था”... अतः जिन्हें वह पहले से प्रॆम करता था” के तुल्य है। “‘पूर्वज्ञान, परमेश्वर का विशिष्ट प्रॆम है’” (जॉन स्टॉट, मूरे को रोमन्स, पृ. 249 में उद्धरत करते हुए)। यह वस्तुतः अपनी प्रीति लगाना या अपने लिए चुनना के समान ही है। अतः रोमियों 8:29 में परमेश्वर के पहले कार्य का अर्थ है कि परमेश्वर अपने लोगों को इस आशय में पहले से जानता है कि वह उन्हें चुनता है और उन से प्रॆम करता है और उनकी चिन्ता करता है। पौलुस बाद में “चुनने” या “चयन किए जाने” की भाषा में लिखता है (रोमियों 8:33; 9:11; 11:5-7)।
आपके लिए सब बातें मिलकर भलाई को उत्पन्न करेंगी यदि आप बुलाए हुए हैं और परमेश्वर से प्रॆम करते हैं, क्योंकि, जैसा कि पद 29 कहता है, पृथ्वी की नींव रखे जाने से पहले परमेश्वर आपको जानता था, और उसने आपको चुना और आपसे प्रॆम किया (इफिसियों 1:4; 2 तिमुथियुस 1:9; 1 पतरस 1:20; प्रकाशितवाक्य 13:8; 17:8)।
“उसने उन्हें पहले से ठहराया भी”
इस प्रतिज्ञा को सुनिश्चित करने के लिए कि सब बातें मिलकर आपके लिए भलाई उत्पन्न करेंगी परमेश्वर ने जो दूसरा कार्य बहुत समय पूर्व किया, वह यह है कि, “उसने पहले से ठहराया ।” “उनके लिए जिन के विषय उसे पूर्वज्ञान था ।” इसका अर्थ यह है कि, इसके पहले कि आपका कोई अस्तित्व ही था उसके अपने होने के लिए आपको चुनने और आप से प्रॆम करने और आपकी चिन्ता करने के पश्चात, उसने यह निर्णय किया कि आप कैसे बनेंगे, अर्थात आप उसके पुत्र के स्वरूप में बदल जाएंगे। “पहले से ठहराए जाने” का अर्थ समय आने से पहले ही यह निर्णय लेना या नियुकत करना कि आपकी नियति क्या होगी। और रोमियों 8:28 की प्रतिज्ञा की भारी नींव के अन्तर्गत, इस पद को इसलिए रखा गया है कि जो लोग परमेश्वर से प्रॆम करते और उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार बुलाए गए हैं उनका यीशु के समान होना नियत है -मसीह के स्वरूप में बदलना नियत है। आपके लिए सब बातें मिलकर भलाई उत्पन्न करती हैं क्योंकि इससे पहले आप का कोई अस्तित्व था आप चुने गए और आप से प्रॆम किया गया, और जिस रीति से उसका चुनाव और प्रॆम स्वयं को अभिव्यक्त करता है, वह आपके लिए एक अकथनीय महान भविष्य, अर्थात, मसीह के स्वरूप में होने, ठहराए जाने में है। आपके लिए सब बातें मिलकर भलाई को उत्पन्न करती हैं क्योंकि सब बातें आपको मसीह के समान बनाने के लिए कार्य करती हैं । इसी के लिए आप से प्रॆम किया गया, और इसी के लिए आपको पहले से ठहराया गया है।
यही आपके मित्र के पिता की वसीयत में दस लाख की बात है। ठीक जिस रीति से वह कानूनी वसीयत पृथ्वी पर आपके धन का आश्वासन देती है, उसी रीति से परमेश्वर का पूर्वज्ञान तथा पहले से ठहराए जाना आपकी महिमा तथा आपके असीम आनन्द को आश्वासित करता है।
“कि वे उसके पुत्र के स्वरूप में हो जाएं”
जो कि पहले उठाई गई आपत्ति को हमारे सामने लाता है। मसीह के समान बनना शायद वर्तमान समय के समस्त दुखों के प्रकट होने वाली महिमा की तुलना में मूल्यवान न बनाता हो। अतः हमें पद 29 में वर्णित परमेश्वर के अन्तिम कार्य को देखना होगा: परमेश्वर कार्यरत है कि “हमें उसके पुत्र के स्वरूप में बनाए, जिस से कि वह बहुत-से भाइयों में पहलौठा ठहरे।”
और इसके लिए हम दो कारणों से अगले सप्ताह तक इन्तज़ार करेंगे: पहला, यह कि आज पर्याप्त समय नहीं है; और दूसरा, पद 29 में मसीह के स्वरूप बनना और पद 30 के अन्त में महिमा पाना आपस में जुड़े हुए हैं, वे अगले सप्ताह के सन्देश का आरम्भ और अन्त होंगे।
परन्तु मसीह के स्वरूप होने और आज के पाठ के विषय दो शब्द कहकर मैं अन्त करना चाहूंगा। इसलिए यह बहुत प्रासंगिक है। जब तक कि आपका मन मसीह के मन के स्वरूप न हो जाए, इस पाठ की शिक्षा सम्भवतः टकराव उत्पन्न करेगी, न कि शान्ति। यह पाठ आपको शान्ति देने और आपको ताकत देने के लिए और आपको यह आत्मविश्वास दिलाने के लिए है कि आपके जीवन की अच्छी और बुरी बातें आपके लिए भलाई उत्पन्न करेंगी, क्योंकि आप मसीह से प्रॆम करने और महिमा दिए जाने के लिए चुने गए और पहिले से ठहराए गए हैं। परन्तु यह तब ही होगा जब परमेश्वर आपको मसीह का मन और आत्मा दे।
यदि आप संघर्षरत हैं तो मैं आपको फटकारने या आपको दोषी ठहराने के लिए यह नहीं कह रहा हूं। लेकिन ठीक इसके विपरीत है। मैं आपको उत्साहित करने के लिए यह कह रहा हूं कि ठीक रीति से मसीह के समान आचरण का होना, गलत कामों के साथ एक जीवन पर्यन्त संघर्ष है, और मसीह के समान बौद्धिक परिवर्तन बुरे विचारों के साथ एक जीवन पर्यन्त संघर्ष है। इसलिए मुझे कभी आश्चर्य नहीं होता जब कुछ लोग पवित्रशास्त्र की कठिन शिक्षाओं पर से ठोकर खाते हैं। मसीह के स्वरूप में होना तुरन्त नहीं हो जाता, न ही आचरण का, न ही भावनात्मक, न ही बौद्धिक परिवर्तन तुरन्त होता है।
इसलिए हम एक दूसरे के लिए प्रार्थना करॆं, कि मसीह के स्वरूप में हमारे परिवर्तन के द्वारा हर रीति से मसीह को महिमा मिले; और हम इस बड़ी निश्चयता में आनन्दित हों कि हमारे चुने जाने और पहले से ठहराए जाने के कारण सब बातें मिलकर हमारे लिए भलाई उत्पन्न करती हैं। और यदि आप यह सोचते बैठे हैं कि क्या मैं चुना गया हूं, क्या मुझे पहले से ठहराया गया है, तो आप इसे इस रीति से जान सकते हैं - क्या आप मसीह को अन्य किसी भी वस्तु से अधिक प्रिय जानते हैं, और कि वह आपको आपके पाप से छुड़ाने और कि वह आपके हृदय को सदा के लिए सन्तुष्ट करने के लिए पर्याप्त है? परमेश्वर की सन्तान का यही चिन्ह है। जिसके पास पुत्र है उसके पास जीवन है (1 यूहन्ना 5:12)। परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया (यूहन्ना 1:12)।
उसे ग्रहण करें!